कोरोना काल में मजदूरों का पलायन
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हम थे जिनके सहारे वो हुए ना हमारे
जिनको मेहनत के पसीने से सींचा
मुसीबत में उन्होंने हाथ खींचा
उन्होंने ही किये अब किनारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
जवानी की जिनको समर्पित
ना दिन देखे ना रातों के तारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
हांथों में ढठ्ठे पड़े थे
पैरों में छाले पड़े थे
जब खाने को मौताज थे हम
रोटी के लाले पड़े थे
तब उन्होंने ही पेट में लात मारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
जब घर में नहीं था निवाला
कारखाने में भी पड़ गया ताला
मकान मालिक ने घर से निकाला
तब फिरे सड़कों पे मारे मारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
अम्मा, बप्पा की तब याद आई
जब घर से बाहर चले थे
अम्मा रोते हुए द्वार आई
बेटा जब भी हो कोई मुसीबत
लौट आना ये घर है तुम्हारा
हम सभी हैं सदा ही तुम्हारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
दिल में गावों की यादें संजोये
चलते चलते हर एक रात रोये
ना थकन थी बच्चों के ना हमारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
घर पहुँचने की खुशियाँ संजोये
ना हम रोये ना बच्चे भी रोये
उदर में नहीं था निवाला
धूप से चेहरा हुआ सबका काला
आ गये हम जब घर के किनारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
मौत ने आके मुझको तब घेरा
उठ गया मेरा अवनी से डेरा
एक तरफ़ फैल गईं ढेर रोटियाँ
दूजे ओर फैल गईं मेरी बोटियाँ
कोई आया ना तब पास हमारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
ना आये किसी पे ऐसी मुसीबत
मेरी तो फूटी थी किस्मत
जो निकले हम अपने घर के द्वारे
गाँव से जो मुख मैंने मोड़ा
शहर ने कहीं का ना छोड़ा
सड़कों पर फिरे मारे मारे
हम थे जिनके सहारे
वो हुये ना हमारे
विद्या शंकर अवस्थी पथिक
Renu
02-May-2022 03:46 PM
👍👍
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Punam verma
02-May-2022 07:47 AM
Very nice
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Swati chourasia
02-May-2022 06:54 AM
बहुत खूब 👌
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